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गुरु घासीदास जयंती के अवसर पर चांपा में निकाली गई सतनाम संदेश यात्रा

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चांपा । नगर चांपा में धूम धाम के मानई गई गुरु घासीदास जयंती ।जयंती के अवसर पर चांपा नगर में वृहद स्तर पर सतनाम संदेश यात्रा के रूप में  पैदल एवं बाइक पर  शोभा यात्रा का आयोजन समिति द्वारा किया गया था जिसमे समाज के सभी वर्ग के लोग शामिल होकर जय सतनाम का नारा लगाते नजर आए । यात्रा रेलवे स्टेशन चांपा से प्रारंभ होकर नगर भ्रमण करते हुए गुरु घासीदास स्मारक केराझारिया लछनपुर में कार्यक्रम स्थल पहुंच कर शोभायात्रा का समापन किया। जिसमे स्थल पर जैतखंब पर ध्वजा रोहण के पश्यत भंडारा प्रसाद वितरण कर कार्यक्रम का समापन किया गया।

गुरु घासीदास को सतनामी समाज का संस्थापक माना जाता है. उनका जन्म 18 दिसंबर 1756 को छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार जिले के कसडोल ब्लॉक के एक छोटे से गांव गिरौदपुरी में हुआ था. उनके पिता का नाम महंगूदास और माता का नाम अमरौतिन बाई था. यह कहा जाता है कि बाबा का जन्म विशेष अलौकिक शक्तियों के साथ हुआ था.

गुरु घासीदास जयंती हर साल 18 दिसंबर को मनाया जाता है. इसे भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के एक प्रसिद्ध आध्यात्मिक नेता और समाज सुधारक गुरु घासीदास की जयंती के रूप में मनाया जाता है.

कब हुआ था गुरु घासीदास का जन्म
गुरु घासीदास का जन्म 18 दिसंबर, 1756 को नागपुर के गिरौदपुरी गांव में हुआ, जो वर्तमान में छत्तीसगढ़ के बलौदा बाजार में स्थित है, और वे एक सतनामी परिवार से थे. वे 19वीं सदी की शुरुआत में सतनाम धर्म के गुरु और एक महान विद्वान के रूप में जाने जाते हैं. घासीदास ने छत्तीसगढ़ के घने जंगलों में अपने विचारों का प्रचार करना आरंभ किया. गुरु घासीदास के बाद, उनके पुत्र गुरु बालकदास ने उनकी शिक्षाओं को आगे बढ़ाया.

गुरु घासीदास जयंती का महत्व
छत्तीसगढ़ और भारत के अन्य क्षेत्रों में सतनामी समुदाय के अनुयायियों के लिए गुरु घासीदास जयंती अत्यंत महत्वपूर्ण है. गुरु घासीदास ने छत्तीसगढ़ में सतनामी समुदाय की स्थापना ‘सतनाम’ के सिद्धांत पर की, जिसका अर्थ है सत्य और समानता. वे एक प्रतिष्ठित व्यक्तित्व थे जिन्होंने जातिगत भेदभाव और अस्पृश्यता जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाई.

गुरु घासीदास ने सत्य का प्रतीक जय स्तंभ की रचना की – एक सफेद रंग का लकड़ी का लट्ठा, जिसके शीर्ष पर एक सफेद झंडा होता है, जो सत्य के मार्ग पर चलने वाले श्वेत व्यक्ति का प्रतीक है. ‘सतनाम’ सदैव स्थिर रहता है और सत्य का स्तंभ (सत्य स्तंभ) माना जाता है.

कार्यक्रम में संत सोनंत, विशु ,संतोष अनंत, दुर्गा कुर्रे,डॉ.बृजमोहन जागृति,  कामेश्वर धैर्य, डॉ धनेश्वरी जागृति, गेंदराम कुर्रे, जगमोहन खंडे, धरम लहरे,पुनिराम लहरे, जितेंद्र पाटले,रामेश्वर बंजारे, रोहित कुर्रे,पार्षद रंजन केवर्त,रविन्द्र बंजारे,ललित कुर्रे,निरंजन सोनवानी,चंद्रकांत रात्रे, संतोष कुर्रे,जय सेवायक,राजकुमार सोनवानी, जसवंत सोनंत, परदेशी कुर्रे, के साथ सैकड़ों की संख्या में लोग उपस्थित रहकर कार्यक्रम को सफल बनाने में अपना योगदान दिया।

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